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त्वां विश्वे॑ अमृत॒ जाय॑मानं॒ शिशुं॒ न दे॒वा अ॒भि सं न॑वन्ते। तव॒ क्रतु॑भिरमृत॒त्वमा॑य॒न्वैश्वा॑नर॒ यत्पि॒त्रोरदी॑देः ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvāṁ viśve amṛta jāyamānaṁ śiśuṁ na devā abhi saṁ navante | tava kratubhir amṛtatvam āyan vaiśvānara yat pitror adīdeḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम्। विश्वे॑। अ॒मृ॒त॒। जाय॑मानम्। शिशु॑म्। न। दे॒वाः। अ॒भि। सम्। न॒व॒न्ते॒। तव॑। क्रतु॑ऽभिः। अ॒मृ॒त॒ऽत्वम्। आ॒य॒न्। वैश्वा॑नर। यत्। पि॒त्रोः। अदी॑देः ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:7» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब द्वितीय जन्म के विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वैश्वानर) संपूर्ण जनों को धर्म्म के कार्य्यों में ले चलनेवाले (अमृत) मरणधर्म्म से रहित यथार्थवक्ता विद्वान् ! जिन (त्वाम्) आपको (शिशुम्) बालक को (न) जैसे वैसे (जायमानम्) उत्पन्न हुए को (विश्वे) सम्पूर्ण (देवाः) विद्वान् जन (अभि) सब ओर से (सम्) उत्तम प्रकार (नवन्ते) स्तुति करते हैं और जिन (तव) आपके (क्रतुभिः) बुद्धि के कर्म्मों से मनुष्य लोग (अमृतत्वम्) मोक्षपन को (आयन्) प्राप्त होते हैं और (यत्) जो आप (पित्रोः) माता और पिता के सदृश विद्या और आचार्य्य के (अदीदेः) प्रकाशक हो, वह आप धन्य हो ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य माता और पिता से जन्म को प्राप्त होकर आठवें वर्ष से प्रारम्भ करके आचार्य से विद्या के ग्रहण से द्वितीय जन्म को प्राप्त होते हैं, वे स्तुति करने योग्य हुए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध करने को समर्थ होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ द्वितीयजन्मविषयमाह ॥

अन्वय:

हे वैश्वानराऽमृताप्त विद्वन् ! यं त्वां शिशुं न जायमानं विश्वे देवा अभि सन्नवन्ते यस्य तव क्रतुभिर्मनुष्या अमृतत्वमायन् यत्त्वं पित्रोरदीदेः स त्वं धन्योऽसि ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वाम्) (विश्वे) सर्वे (अमृत) मरणधर्म्मरहित (जायमानम्) उत्पद्यमानम् (शिशुम्) बालकम् (न) इव (देवाः) विद्वांसः (अभि) (सम्) सम्यक् (नवन्ते) स्तुवन्ति (तव) (क्रतुभिः) प्रज्ञाकर्म्मभिः (अमृतत्वम्) मोक्षस्य भावम् (आयन्) प्राप्नुवन्ति (वैश्वानर) यो विश्वान्नरान् धर्मकार्य्येषु नयति तत्सम्बुद्धौ (यत्) यः (पित्रोः) मातपित्रोरिव विद्याऽऽचार्ययोः (अदीदेः) प्रकाशयेः ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्या मातापितृभ्यां जन्म प्राप्याऽष्टमं वर्षमारभ्याऽऽचार्य्याद्विद्याग्रहणेन द्वितीयं जन्म प्राप्नुवन्ति ते स्तुत्याः सन्तो धर्म्मार्थकाममोक्षान् साद्धुं शक्नुवन्ति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे माता-पिता यांच्याकडून जन्म घेतल्यावर आठव्या वर्षापासून आचार्यांकडून विद्या ग्रहण करून द्वितीय जन्म प्राप्त करतात ती प्रशंसनीय ठरून धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सिद्ध करण्यास समर्थ ठरतात. ॥ ४ ॥